आ अब लौट चलें
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मुझे याद है आज भी वो जमाना जब हम छोटे थे और बाज़ार से कोई भी सामान लेने जाते थे तो एक कपड़े का थैला हमारे हाथ में होता था। कपड़े का थैला जरूरत के अनुसार छोटा या बड़ा होता था । ये सारे थैले मेरी मम्मी बड़े चाव से अपने हाथ से घर पर ही सिलती थीं । फिर धीरे धीरे हम बड़े होते गए और आधुनिक भी। कपड़े का थैला हाथ में ले जाने का फैशन खत्म सा हो गया या यूं कहें कि हम झिझकने लगे इसको घर से ले जाने में। फिर पॉलिथीन के थैले आने लगे और हम घर से खाली हाथ जाते और पॉलिथीन के थैलों में सामान ले कर घर लौटते। हमें ये एहसास ही ना था कि पॉलिथीन से हमें और समाज को कितना नुकसान पहुंचता है। अाइए इस नुकसान के एहसास को अपने अंदर जगाएं एवम् पॉलिथीन का प्रयोग बंद कर दें। आइए अब फिर से लौट चलें पुराने दिनों की ओर और अपने घर से कपड़े के थैले लेकर निकलें जब भी कोई सामान लेने जाएं। @विनय की कलम से
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